अष्टविनायक यात्रा का महत्व
इस यात्रा का नाम ‘अष्टविनायक’ कैसे पड़ा। ‘अष्ट’ यह एक संस्कृत शब्द है। जिसका मतलब मे आठ होता है, और विनायक का मतलब गणेशजी का एक सुप्रसिद्ध नाम है। इस यात्रा मे गणेशजी के आठ मंदिरों का समावेश है, जो की हर एक मूर्ति खुद हो के प्रगट हुई है, यानी की सब स्वयंभू है। यह गणेश जी महत्वपूर्ण यात्रा मानी जाती है जिससे भगवान गणेशजी की असीम कृपा आप पर रहती है। यह सभी पवित्रस्थल महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिल्हे में (५),रायगढ़ जिल्हे में (२) और अहमदनगर जिल्हे में (१) आते है। अष्टविनायक यात्रा के हरएक मंदिर विशेष महत्व है, जो भिन्न प्रकार की आठ मूर्तियों से दिखता है। इन सभी मंदिर से जुड़ी हुई अलग अलग कथाये और इतिहास है, जो की एक दुसरे से अलग है, जिसका वर्णन बहोतसे पुराणों, और दंत कथाओ मिलता है।
अष्टविनायक यात्रा मे कोन कोनसे मंदिर आते है
आइए जानते है के वे कोन कोनसे पवित्र मंदिर है, जो इस अष्टविनायक यात्रा मैं शामिल है और उनकी क्या विशेषता:ये है। आप इस मार्ग से यात्रा प्रारंभ करते हो, तो तीन दिनों मे पूर्ण हो जाएगी। वास्तव मैं इन तीर्थस्थलों के मार्गक्रम का उल्लेख पुराणों एवमं शस्त्रों मैं भी लिखा मिलेगा।
१. मोरेश्वर – मोरगाँव
२. सिद्धिविनायक – सिद्धटेक
३. बल्लालेश्वर – पाली
४. वरदविनायक – महाड
५. चिन्तामणि – थेउर
६. गिरिजात्मज – लेण्याद्रि
७. विघ्नेश्वर – ओझर
८. महागणपती – रांजनगाव
आइए जानते है की इन मंदिर क्या विशेषता है
१. मोरेश्वर (मोरगाँव) – यह मंदिर पुणे जिल्हे के मोरगाँव मे आता है। जो की पुणे शहर से ६० किमी की दूरी पे है। इस मंदिर की यह कथा है की इसी स्थान पर गणेशजी ने सिंधुरासुर नामक राक्षस मोर पर सवार के उससे युद्ध करके किया था। इसलिए इस मंदिर का नाम मोरेश्वर पड़ा है। इस मंदिर की एक और खासियत है, गणपती के सामने नंदी है। आमतोर पर शिवजी के सामने नंदी होता है पर यहा गणेश जी सामने है। उसकी भी एक रंजक कथा है, किसी शिवजी की मंदिर पर नंदी को लेके वाहन जा रहे थे जहा पर यह नंदी है वहा पर वाहन टूट गया और मूर्ति को सभी प्रयास किए पर हटाया नहीं जा सका वो वही पर रही।
२. सिद्धीविनायक (सिद्धटेक) – कर्जत मे अहमदनगर के पास भीमा नदी स्थित पहाड़ पर, पुणेसे २०० किमी पर आता है। ऐसी मान्यता है, इस मंदिर मे भगवान विष्णु ने गणेशजी की पूजा करके मधू और कैटभ नामक राक्षसों का वध किया था। यह पूरे अष्टविनायक मंदिर मे एकमात्र मंदिर है की जिसमे श्री गणेशजी की मूर्ति की सूंड दाई तरफ है। श्री गणेश भक्तों की मान्यता है इस प्रकार की मूर्ति की पूजा करते समय कठोर नियम का पालन करना होता है। इस मंदिर को परिक्रमा करने के लिए पूरे पर्वत को परिक्रमा करनी पड़ती है उसको लगभग ३० मीनीट लगते है। इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकरजी ने किया था, यह की गणेशजी की मूर्ति स्वयंभू है।
३. बल्लालेश्वर (पाली) – यह श्री गणेश जीका मंदिर पाली गाँव जिल्हा रायगड में है। जो के मुंबई पुणे हाइवे पर है। यह मंदिर उनके परम भक्त बल्लाल के नाम से बनाया गया है। यह कथा इस प्रकार है की बल्लाल नामक उनका भक्त को क्युकी वो दिन-रात श्री गणेश जी की पूजा अर्चना करते थे। इसलिए उनके घरवालों ने श्री गणेश जी की मूर्ति जंगल मे कही पर फेक दी और बल्लाल को घर से हकाल दिया तब एक दिन जंगले मे बल्लाल श्री गणेश जी नामस्मरण करने लगे तो गणेशजी प्रसन्न होकर उनको साक्षात दर्शन दिए। इसलिए उनके नाम पर मंदिर बनाया गया। इस मंदिर की एक और खासियत है की यह पर श्री गणेश जी को मोदक की जगह बेसन के लड्डू का भोग लगाया जाता है।
४. वरदविनायक (महाड) – महाड का यह मंदिर मुंबई पुना हाइवे पर पुनासे ८० किमी पर स्थित है। यह मंदिर की ऐसे मान्यता है की, वरदविनायक गणेश जी सबकी मनोकामनाए पूर्ण करता है। इस मंदिर निर्माण भी एक अलग ही कथा के साथ हुआ है। एक खूबसूरत राजकुमार थे जिनका नाम रुक्मंगद था। दूसरी तरफ एक ऋषि वाचक्नवी की पत्नी नाम मुकुंद था। अब मुकुंद ने रुक्मंगद चाहने लगी और रिश्ता बनाना चाहती थी पर रुक्मंगद ने साफ इनकार कार देते यही तोह मुकुंद राजकुमार को कुष्टरोग का श्राप देती। फिर एक दिन इन्द्र रुक्मंगद का रूप लेके मुकुंद से संबंध बनाता है। अब मुकुंद इन्द्र से संतुष्ट थी। उससे उनको एक पुत्र होता है जिसका नाम ग्रुत्समद रखते है। ग्रुत्समद को उसके जन्म की बात पता चलती है तो वह उसकी मा मुकुंद को बोरी का पेड बनने का श्राप देता है। बदले मे उसकी मा ग्रुत्समद को त्रिपुरसुर नामक राक्षसपुत्र होगा जिसको बाद मे शिव-जी ने रांणजण गाँव मे गणेश जी की उपासना करके युद्ध करके मारा था। शापित ग्रुत्समद ने पुष्पक वन मे जा कार गणेश जी की उपासना शुरू की और यहा पर मंदिर बनाया।
५. चिन्तामणि (थेउर) – चिन्तामणि मंदिर पुनासे २२ किमी दूरी पर है। इस गणेश मूर्ति की सूंड जो है वो दाई तरफ है। एक मान्यता के अनुसार मंदिर के स्थान पर लालची व्यक्ति गुण नामक से ऋषि कपिला के लिए गणेशजी ने चिन्तामणि रत्न प्राप्त किया था। हलकी रत्न प्राप्त करने के बाद ऋषि कपिला ने गणेश जी के गले मे डाल दिया। इसलिए इस मंदिर का नाम चिन्तामणि हुआ। वो रत्न इसी कदंब वृक्ष के नीचे दिया था, इसलिए इस गाँव का पुराना नाम कदंबनगर पड़ा था।
६. गिरिजात्मज (लेण्याद्रि) – यह मंदिर पर्वत पर है और सबसे अनोखा है। क्युकी यह एक गुफ़ा मे बसा है और इस तरीके से बनाया गया है के दिनभर यह सूर्य की रोशनी होती है। इस मंदिर मे कोई बिजली का बल्ब नहीं है। और गुफ़ा मे होने की वजह से बाकी मंदिरों की तरह इसमे ज्यादा नकाशी नहीं है।
एक अखाईका के अनुसार माता पार्वती (शिव जीकी पत्नी) ने यही स्थान पर गणेश को प्राप्त केरने के लिए तपस्या की थी। गणेशजी पार्वती (गिरिजा) के आत्मज (पुत्र) है इसलिए नाम पड़ा गिरिजात्मज।
७. विघ्नेश्वर (ओझर) – यह मंदिर पुणे-नाशिक हाइवे पर, पुणे के जुन्नर तालुका मे स्थित है। यह देवस्थान इन सब मंदिरों मे सबसे श्रीमंत माना जाता है, क्युकी इस मूर्ति को दोनों आँखों मे माणिक रत्न और माथे पर हीरा जड़ा है, बड़ी ही प्रसन्न इसकी मुद्रा है। हमारे जीवन की सब आफ़तों का दुखों का निवारण होता है, इसलिए भी इसे विघ्नेश्वर कहा जाता है। इस मंदिर का भी इतिहास बड़ा रोचक है। एक बार क्या हुआ के देवाओके देव इन्द्रदेव ने विघ्नासुर नामक राक्षस का निर्माण राक्षसों और राजा अभिनंदन द्वारा की जाने वाली प्रार्थना नष्ट करने के लिए बनया पर वो उसके भी आगे जाके सभी धार्मिक कार्य को नष्ट करने लगा। इसलिय फिर गणेशजी ने उसको युद्ध मे हराया। तभी वो गणेश जी से प्राण की भिक मांगने लगा, तब गणेश जी ने उसे क्षमा कार के एक शर्त रखी, वो काभी भी किसी धार्मिक विधि मे बाधाए(विघ्न) पैदा नहीं करेगा, फिर राक्षस बदले मे एक वरदान मांगा उसका नाम गणेश जी के पहेले लेना चाहिय, तबसे गणेश जी नाम विघ्नेश्वर हो गया। विघ्न का संस्कृत मे अर्थ होता है की बाधा उत्पन्न करना, अनुशासित या किसी भी धार्मिक कार्य मे रुकावट निर्माण करना होता है।
८. महागणपती (रांजनगाव) – यह स्थान पुणे जिल्हे से ५० किमी की दूरी पर है। यहा के मंदिर की खासियत है के श्री गणेश जी की मूर्ति को दस हात है। यह स्थान सब अष्टविनायक मंदिरों मे से सबसे प्रभावशाली और शक्तिमान जाना जाता है, आप आगे कथा पढ़के समज ही जाओगे। मंदिर से जुड़ी कथा यह है की भगवान शंकर ने त्रिपुरसुर नामक राक्षस को शक्तिया प्रदान की थी। जिसके कारण वो स्वर्गलोक और पृथ्वी पर लोगों को तकलीफ देने लगा, और धार्मिक कार्य मे बधाए निर्माण करने लगा। इस कारण भगवान शंकर और त्रिपुरासुर मे युद्ध छिड़ गया पर त्रिपुरासुर को हारने मे कठनाईया रही थी, तब भगवान शंकर ने श्री गणेश जी की इसी स्थान पर पूजा करनी पड़ी तब त्रिपुरसुर का वध हो गया।
इन सभी मंदिरों मे भोजन एवमं निवास की उत्तम व्यवस्था है। इस तरह इन अष्टविनायक यात्रा का हर एक मंदिर की अलग अलग प्रकार की स्वयंभू मूर्तिया आपको नजर आएगी, यह मंदिर काही पहाड़पर, नदी किनारे, वन और गुफ़ा मे है, इसलिए इन जगह से जाते हुए आपको पर्यटन का भी आनंद मिलेगा। अगर आप अकतूबर से लेके अगर दिसम्बर तक जाते हो, तो हर जगह हरियाली और झरने नजर आएंगे। इस अष्टविनायक यात्रा के हर एक स्थान का अपना अपना महत्व है, जिसके कारण यह यात्रा करने का पुण्य फल मिलता है। पूरे भारत और विदेश से यह पर्यटक यहा आते है।